आज हम आपको आपको एक ऐसे समुद्र क्षेत्र के बारे मे बताते हैं जिसे पिशाच त्रिकोण के नाम से जाना जाता है। यह त्रिकोण अमेरिका के पास अटलांटिक महासागर मे है जिसे बरमूडा ट्रायएंगल के नाम से जाना है। ऐसा माना जाता है कि जो भी कुछ इस बरमूडा ट्रायएंगल के ऊपर से गुजरता है बो हमेशा के लिए अद्रश्य हो जाता है। कई वेज्ञानिकों ने इसका पता लगाने के लिए स्वयं इस बरमूडा ट्रायएंगल पर गए लेकिन बो भी हमेशा के लिए गायब हो गए। जब इस वेज्ञानिकों कि टीम को बरमूडा ट्रायएंगल भेजा गया तो उन वेज्ञानिकों के साथ जो भी घटना हुयी बो रेकॉर्ड हो गयी जिसमे वेज्ञानिकों ने कहा कि ” हमे एक अजीब से रोशनी दिखाई दे रही है। कम्पास की सुई अचानक गलत दिशा बताने लगी है। हमे नहीं पता हम किस और जा रहे हैं। आकाश मे बादलो का गुब्बारा दिखाई दे रहा है और मोमबत्ती के जेसी रोशनी ऊपर नीचे हो रही है। हमे ऐसा लग रहा है जेसे हम दूसरी दुनिया मे पहुँच गए हैं। ” तभी वेज्ञानिकों कि शोर शराबे की आवाज़े आना बंद हो गयी और इसके बाद जहाज से सेंटर का कनैक्शन टूट गया। इसके बाद कई वेज्ञानिको का दल उन लापता हुये लोगो को खोजने निकला लेकिन उनके साथ भी बही हुआ।
बरमूडा ट्रायएंगल अब तक कई जहाजों और विमानों को अपने आगोश में ले चुका है, जिसके बारे में कुछ पता नहीं चल पाया। सबसे पहले 1872 में जहाज़ द मैरी बरमूडा त्रिकोण में लापता हुआ, जिसके बारे में कुछ पता नहीं चल पाया। लेकिन बारमूडा ट्रायएंगल का रहस्य दुनिया के सामने पहली बार तब सामने आया, जब 16 सितंबर 1950 को पहली बार इस बारे में अखबार में लेख भी छपा था। दो साल बाद फैट पत्रिका ने ‘सी मिस्ट्री एट अवर बैक डोर’ शीर्षक से जार्ज एक्स. सेंड का एक संक्षिप्त लेख भी प्रकाशित किया था। इस लेख में कई हवाई तथा समुद्री जहाजों समेत अमेरिकी जलसेना के पाँच टीबीएम बमवर्षक विमानों ‘फ्लाइट 19’ के लापता होने का ज़िक्र किया गया था। फ्लाइट 19 के गायब होने की घटना को काफ़ी गंभीरता से लिया गया। इसी सिलसिले में अप्रैल 1962 में एक पत्रिका में प्रकाशित किया गया था कि बरमूडा त्रिकोण में गायब हो रहे विमान चालकों को यह कहते सुना गया था कि हमें नहीं पता हम कहां हैं, पानी हरा है और कुछ भी सही होता नज़र नहीं आ रहा है । जलसेना के अधिकारियों के हवाले ये भी कहा गया था कि विमान किसी दूसरे ग्रह पर चले गए। यह पहला आर्टिकल था, जिसमें विमानों के गायब होने के पीछे किसी परलौकिक शक्ति यानी दूसरे ग्रह के प्राणियों का हाथ बताया गया। 1964 में आरगोसी नामक पत्रिका में बरमूडा त्रिकोण पर लेख प्रकाशित हुआ। इस लेख को विसेंट एच गोडिस ने लिखा था। इसके बाद से लगातार सम्पूर्ण विश्व में इस पर इतना कुछ लिखा गया कि 1973 में एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में भी इसे जगह मिल गयी। वहीं बारमूडा त्रिकोण में विमान और जहाज़ के लापता होने का सिलसिला जारी रहा ।
कुछ प्रमुख घटनाये:-
अब तक बरमूडा त्रिकोण में लापता हुआ जहाज़ -
1872 में जहाज़ ‘द मैरी सैलेस्ट’ बरमूडा त्रिकोण में लापता हुआ, जिसका आजतक कुछ पता नहीं।
1945 में नेवी के पांच हवाई जहाज़ बरमूडा त्रिकोण में समा गये। ये जहाज़ फ्लाइट-19 के थे।
1947 में सेना का सी-45 सुपरफोर्ट जहाज़ बरमूडा त्रिकोण के ऊपर रहस्यमयी तरीके से गायब हो गया।
1948 में जहाज़ ट्यूडोर त्रिकोण में खो गया। इसका भी कुछ पता नहीं। ( डीसी-3 )
1950 में अमेरिकी जहाज़ एसएस सैंड्रा यहां से गुजरा, लेकिन कहां गया कुछ पता नहीं।
1952 में ब्रिटिश जहाज़ अटलांटिक में विलीन हो गया। 33 लोग मारे गये, किसी के शव तक नहीं मिले।
1962 में अमेरिकी सेना का केबी-50 टैंकर प्लेन बरमूडा त्रिकोण के ऊपर से गुजरते वक़्त अचानक लापता हुआ।
1972 में जर्मनी का एक जहाज़ त्रिकोण में घुसते ही डूब गया। इस जहाज़ का भार 20 हज़ार टन था।
1997 में जर्मनी का विमान बरमूडा त्रिकोण में घुसते ही कहां गया, कुछ पता नहीं।
द मैरी सैलेस्ट
1918 में `साइक्लोप्स´, 1948 में `डीसी-3´, 1951 में `सी-124 ग्लोबमास्टर´, 1963 में `मरीन सल्फरीन´ और 1968 में परमाणु शक्ति चालित पनडुब्बी `स्कॉरपियन´ आदि जैसे कई जहाज़ तथा वायुयान इस क्षेत्र में या तो गुम हो चुके हैं या फिर किसी अनजान दुर्घटना के शिकार बने हैं। पिछली दो शताब्दियों में 50 से ज़्यादा जहाज, 20 से ज़्यादा वायुयान और हज़ार से ज़्यादा व्यक्ति बरमूडा त्रिभुज की रहस्यमयी शक्तियों के जाल में फंस चुके हैं।